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Monday, April 6, 2009

है कहीं वोह

है कहीं वोह
जिसका मुझे इंतज़ार है
मालुम है की वोह आएगा
इन आसुओं को पोछने,
इस दिल को सम्बलने
इस जिस्म को जगाने
यकीन है मगर इरादा नही
फिर भी लगता है की हक है मुझे उसके यादों में मेरी दिन रात बिताने

1 comments:

Bhumika said...

Way to go krips... this poem is so cute... Ur hindi is amazing... never knew u cud write hindi poems too...good job...